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वाह क्या खुद ही का मजाक बना रहे हो
इतने गम-ज़दा हो कर भी मुस्कुरा रहे हो
इतने सलीके से खुदको लुटवाके आये हैं
शायद शरीफों की बस्ती होकर आ रहे हो
#बेख़बर
रावण: एक दृष्टि, अनेक रूप
रावण हूँ, पर क्या सच में बुरा हूँ?
हर युग ने मेरा रूप अलग देखा,
कभी असुर, कभी महाज्ञानी,
कभी अहंकारी, कभी बलिदानी।
शिव का भक्त, वेदों का ज्ञाता,
नीति में दक्ष, रण में प्रखर,
पर अहंकार की ज्वाला में जलकर,
स्वयं रच दिया अपना प्रहर।
मैं रावण हूँ, दशानन कहलाया,
पर क्या सच में दस सिर थे मेरे?
या केवल दस दिशाओं तक फैली,
मेरी बुद्धि के सागर की लहरें?
सीता को हर लाया, यही अपराध सही,
पर छुआ नहीं, मर्यादा निभाई वहीं।
फिर भी खलनायक कहलाया,
क्या मेरी कोई और कथा नहीं?
राम ने मारा, धरती ने देखा,
पर विजयी कौन? यह प्रश्न जले,
मैं हारा, या हारी मेरी काया,
या अंत में अहंकार ही ढह चले?
रावण हूँ, और रावण ही रहूँगा,
हर युग में, हर रूप में,
कभी सीख, कभी भूल बनकर,
फिर भी इतिहास में अमर रहूँगा।
रावण जीЧитать полностью…
मचलते हुए मन पर अब मुझे काबू चाहिए
जिंदा हो या मुर्दा हम मुझे बाबू चाहिए 🥺😌
Babbbuuuu ❤️🥺😍
हमें भला क्यों याद करेगा वो
उसके पास तो एक जमाना है
शायद उसे तो खबर तक नहीं
यह आशिक उसका दीवाना है
मैं नहीं चाहता वो भी प्यार करे
मैंने किया है मुझे ही निभाना है
शाम हो गयी तुम घर जाओ यारो
मुझे तो उसकी गली में जाना है
तुम को देख कर ताजा लगेगा
मगर मेरा ज़ख्म काफी पुराना है
#बेख़बर
उदासी बेच कर मैं फूल लाया था
बहुत दिन बाद खुल कर मुस्कुराया था
उदासी और ग़म ने जो सिखाया था
वही मैंने ख़ुशी पर आज़माया था
उतर कर आसमाँ से अजनबी कोई
मेरी ख़ातिर ज़मीं पर इश्क़ लाया था
हज़ारों लड़कियाँ थीं दिल लगाने को
मेरा दिल बेवफ़ा लड़की पे आया था
#आकाश
अगर किसी लड़की को उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ I Love You बोलना ग़लत है,
तो किसी लड़के को भी उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ "भैया" बोलना भी ग़लत है...
सही कहा ने मैंने...
Good Afternoon All
मैं दिल का आज फिर सौदा करूँगा
वो जैसा कह रही वैसा करूँगा
मैं बातें मान लूँगा तेरी सारी
मैं सारे ज़ख़्म फिर ताज़ा करूँगा
ज़रा सी देर को आ जा कि मैं भी
अब अगली बार से वादा करूँगा
तुम्हारे हिज्र का मारा मैं आशिक़
यूँ ही अब दर बदर भटका करूँगा
तेरी ख़ातिर नहीं खा सकता पत्थर
मगर कुछ तो मैं मजनू सा करूँगा
कोई पहलू है उसका अनछुआ सा
जिसे जाना तो जाने क्या करूँगा
#आकाश
भरता हूँ सिगरेट खाली जाम करता हूँ
रातो दिन बस इक यही तो काम करता हूँ
इक तरफ़ होती ख़ुशी है उसके जाने से
इक तरफ़ जाने से मैं कोहराम करता हूँ
दुश्मनों में आती है गिनती मेरी उसके
पर मैं उसके दोस्तों का काम करता हूँ
नाम पर उसके हो जाती जंग है मेरी
उसको लगता है उसे बदनाम करता हूँ
ग़ज़लें मेरी हैं किसी की यादें मेरे दोस्त
ग़ैरों के दम पर मैं अपना नाम करता हूँ
#आकाश
सिर्फ भारत में :
खानदान में किसी एक लड़के की
भर्ती पुलिस में हो जाये,
तो पूरा खानदान अपनी गाड़ी में "पुलिस" लिखवा लेता है...
Good Afternoon All
चार फेरे, सात वचन
चार फेरे लिए संग-संग, प्रेम के दीप जलाए,
संग जीने-मरने की मन्नत, मन के भाव बताए।
पहला फेरा – धर्म का नाता, सच्चाई की राह,
साथ निभाएँ हर जनम, कभी न हो मन की थाह।
दूसरा फेरा – जीवन में सुख-दुख बाँटे,
मिलकर हर संघर्ष को, हँसते-गाते काटे।
तीसरा फेरा – प्रेम की गहराई, विश्वास की डोर,
मिलकर चलें हर राह पर, संग बनें एक ठोर।
चौथा फेरा – परिवार का सम्मान, बड़ों का आदर,
रिश्तों की बगिया महकाएँ, करें जीवन सुंदर।
अब सात वचन भी लेंगे, प्रेम की सौगंध,
साथ निभाएँ जीवनभर, प्रेम की होगी गंध।
पहला वचन – एक-दूजे का साथ निभाएँगे,
हर परिस्थिति में प्रेम बढ़ाएँगे।
दूसरा वचन – विश्वास की डोर न टूटेगी,
हमारे बीच दूरी न छूटेगी।
तीसरा वचन – स्नेह और सम्मान रहेगा,
एक-दूजे का अभिमान रहेगा।
चौथा वचन – परिवार की शान बढ़ाएँगे,
संस्कृति का मान बढ़ाएँगे।
पाँचवाँ वचन – हर दुःख में साथ देंगे,
कभी एक-दूजे को न छोड़ेंगे।
छठा वचन – सच्चाई की राह चलेंगे,
प्रेम की मिसाल बनेंगे।
सातवाँ वचन – जनम-जनम का बंधन होगा,
हमारा प्रेम अमर होगा।
चार फेरे, सात वचन, जीवन का आधार,
इस पावन रिश्ते से जुड़ा, प्रेम अपार..!
रावण जीЧитать полностью…
अगर तुझपे हमारा दिल नहीं आता
हमारी ज़िन्दगी में थ्रिल नहीं आता
मुझे तो जान देनी पड़ रही है अब
सुना था आशिक़ी का बिल नहीं आता
कि इक अफ़वाह सुन ख़ुश हो गए बच्चे
कि पेपर इश्क़ का मुश्क़िल नहीं आता
कहीं हम डूब जाते उस समंदर में
भला होता कभी साहिल नहीं आता
बटन तू खोलती थी शर्ट के तिल तिल
तुझे ये याद भी तिल तिल नहीं आता
#आकाश
मैं, तुम और चाय
धुंधली सुबह, हल्की ठंडक,
एक कप चाय, और तुम्हारी झलक।
भाप उठे जैसे ख्वाब मेरे,
मीठी बातें, चीनी से भी अधिक।
तुम्हारी हंसी की खनक में,
चम्मच की हल्की टकराहट।
शब्द न कहे, फिर भी सब कुछ,
आँखों में छुपी रही चाहत।
कभी अदरक की तीखी गर्मी,
कभी इलायची-सी मिठास।
हमारी बातें भी कुछ ऐसी,
रूठना-मनाना हर इक सांस।
चाय ठंडी हुई, पर यादें गर्म,
मोहब्बत के प्याले में डूबी।
मैं, तुम और चाय हमेशा,
एक अधूरी, मगर प्यारी रूबी।
रावण जीЧитать полностью…
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शीर्षक: मेरठ सौरभ हत्याकांड से प्रेरित
("सदियों की पीड़ा")
सदियों से सहती आई हूँ,
फिर भी चुप ही पाई हूँ।
अन्याय, शोषण, अत्याचार,
सब कुछ सहकर आई हूँ।
फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ,
जब तुम पर ज़रा सा संकट छाया।
डर, दहशत, असहायता,
अचानक सारा समाज घबराया।
जो मेरी पीड़ा को अनसुना कर गए,
आज वही दुख से तड़प उठे।
जो आँसू मेरे सूख गए थे,
आज तुम्हारे पलकों में ठहर उठे।
हम तो बस इतना कहते हैं,
अन्याय किसी संग भी सहा न जाए।
पर सदियों का जो बोझ मिला,
क्या वह अब भी गिना न जाए?
गलत अगर है, तो सबके लिए,
ना कोई ऊँचा, ना कोई नीचा।
पर क्या मेरी आवाज़ सुनी गई?
या बस मेरी तक़दीर ही थी पीड़ा?
रावण जी
दिल हो रहा है, बेजार बहुत
याद आ रहा है तू यार बहुत
तुझे ये शायद झूठ लगे
अब भी है तुझ से प्यार बहुत
तू साथ रहेगा सदा मेरे
दिल को था ये एतबार बहुत
कहीं से तू दे जाये दिखाई
इस दिल को मिले करार बहुत
ठोकर लगी तो हमने जाना
करना नहीं चाहिए इकरार बहुत
दिल ले आया दिल ले आया फिर तेरी
गली हमने किया था इनकार बहुत
अब यहां पे दिल नहीं लगता
बेगाना लगता है ये संसार बहुत
ख़ामोश हो जा अब 'बेखबर'
नहीं आयेगा वो ना पुकार बहुत
#बेख़बर
शहीदों की अमर गाथा
वीरों की धरती के लाल थे तुम,
क्रांति की ज्वाला की ज्वाल थे तुम।
सुखदेव, भगत और राजगुरु,
आज भी हर दिल की चाल थे तुम।
गूँज उठी थी जब इंकलाब की बोली,
बेखौफ थे तुम, न थी कोई डोली।
हँसते-हँसते फाँसी को चूमा,
माँ के सपनों की तुम थे होली।
इंसाफ़ की माटी को रक्त से सींचा,
देश के लिए हर कष्ट को भींचा।
गोरे हक़ूमत को डरा दिया था,
आज़ादी का दीप जला दिया था।
रहेंगे सदा अमर ये बलिदान,
हर दिल में जागे तुम्हारी पहचान।
जब-जब गूंजेगा 'इंकलाब',
याद आएगा तुम्हारा अभिमान।
जय हिंद.! 👏🏻💐🍃🇮🇳Читать полностью…
प्रेम निस्वार्थ होना चाहिए
प्रेम निस्वार्थ होना चाहिए,
न कोई शर्त, न कोई भय,
न अपेक्षाओं की बेड़ियाँ,
न स्वार्थ का कोई संशय।
जैसे सूरज रोशन करता है,
बिना किसी चाह के स्नेह लुटाए,
जैसे नदियाँ बहती रहती हैं,
किनारों से कुछ न पाए।
प्रेम तो बस प्रवाह है,
त्याग, समर्पण, और आह्वान,
जहाँ "मैं" का कोई अस्तित्व नहीं,
बस "हम" का होता है मान।
अगर कोई लौटाए प्रेम,
तो भी मन प्रसन्न रहे,
और यदि मौन ही मिले बदले में,
तो भी हृदय निर्मल रहे।
क्योंकि प्रेम सौदा नहीं होता,
न ही लेन-देन का हिसाब,
यह तो बस आत्मा की भाषा है,
जिसमें न कोई रुकावट, न जवाब।
रावण जीЧитать полностью…
अगर तुम सुनो तो मैं कहूँ
मेरी एक फरियाद बाकी है
किसी रोज वक्त मिले आना
मेरे पास तेरी एक याद बाकी है
#बेख़बर
"लव का नाम, छल का काम"
प्रीत के वादे, मीठे बोल,
मन में लेकिन काला घोल।
रूप बदलकर आया जो,
साजिश का था जाल बिछाया वो।
मंत्रों की गूँज भुला दी जाती,
झूठी कसमें सिखा दी जाती।
माँ-बाप का सब मान मिटाया,
फिर अपमान में छोड़ भी आया।
सपनों में जो बसा था प्यार,
निकला केवल छल का वार।
नाम बदला, पहचान मिटाई,
फिर अपनों से दूरी करवाई।
ओ बहना! अब जाग भी जा,
मीठी बातों में मत उलझा।
तेरा धर्म, तेरा अस्तित्व,
तेरी पहचान न हो विलुप्त।
सच्चा प्यार जो करता है,
धर्म बदलने को कहता है?
तेरी मर्यादा जो तोड़े,
क्या वो सच में तुझे जोड़े?
संस्कारों का दीप जलाओ,
अपनी जड़ों को न भुलाओ।
अपनी अस्मिता को पहचानो,
कुटिल माया को अब जानो।
रावण जीЧитать полностью…
लव जिहाद: एक विचार
प्यार का रंग ना कोई धर्म हो,
ना बंधे ये जाति के कर्म हो।
दिल से दिल की जो राह चले,
वो कैसी साजिश, कैसा छलें?
पर जब इश्क़ के नाम पर,
हो छल, कपट, कोई षड्यंत्र,
जब प्रेम बने कोई हथियार,
तो कैसा ये पवित्र संस्कार?
सच्चा प्यार तो निस्वार्थ हो,
ना भय, ना दबाव, ना स्वार्थ हो।
पर जब इरादे नेक ना हों,
तो प्रेम नहीं, बस एक वार हो।
अगर प्रेम में सच्चाई है,
तो क्यों बदले पहचान वहाँ?
अगर मन में सफ़ाई है,
तो क्यों छिपाए सम्मान वहाँ?
प्रेम हो तो समानता से,
ना दबाव से, ना चालों से।
अगर इश्क़ पवित्र बनाना है,
तो इसे सच्चे दिल से निभाना है।
रावण जीЧитать полностью…
ग़ज़ल
चाँद सूरज नहीं बस सितारा मिले,
डूब जाने लगूं तो किनारा मिले।
मैं अकेला नहीं साथ तन्हाइयां,
आरज़ू साथ कुछ तो तुम्हारा मिले।
ज़िंदगी कट गयी आरज़ू बस यही,
फिर नये जन्म में तू दुबारा मिले।
इश्क़ फूले फले इस जहां में सदा,
अब न कोई यहाँ बेसहारा मिले।
छोड़कर ये ज़माना चला आऊँगा,
बस तिरा इक कहीं से इशारा मिले।
#आकाश
ख़ुद को अपने पास बिठा लेता हूँ
फिर अपना दुख आप सुना लेता हूँ
ताकि मुझे एहसास रहे जीने का
रोज़ाना इक बात चुभा लेता हूँ
सारे ख़्वाब अधूरे रह जाते हैं
ख़ुद को रस्सी से लटका लेता हूँ
उसको छूने से राहत मिलती है
आता- जाता हाथ मिला लेता हूँ
#आकाश
सुनीता विलियम्स: अंतरिक्ष की अनोखी यात्रा
नभ के पार उड़ान भरती,
सपनों को साकार करती।
हौसले की मिसाल है जो,
वह सुनीता, निडर, अपरिचित डर से।
बचपन से ही आँखों में सपना,
आकाश छूने का था अपना।
मेहनत, हिम्मत, लगन जुटाई,
नभ की ऊँचाई तक पहुँचाई।
चंद्रमा की किरणें देखीं,
तारों संग बातें कीं।
अंतरिक्ष में जीवन खोजा,
नए नए रहस्य भी जोड़ा।
नारी शक्ति की पहचान बनी,
भारत की भी शान बनी।
सपनों को जो चाहो पाना,
सुनीता से सीखो मुस्काना।
न रुकना, न झुकना, बस आगे बढ़ना,
हर मुश्किल से लड़ना, हर सपने को पढ़ना।
सुनीता, तुम हो प्रेरणा..! ✨Читать полностью…
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